‘अवकाश‘ शब्द का सामान्य अर्थ होता है काम के बीच छुट्टी।
लेकिन यह बहुत सतही अर्थ है अध्यात्म में अवकाश को रिक्तता, खालीपन या शून्यता कहा हैं।
रिक्त और शून्य ये दो ऐसे शब्द हैं कि यदि ठीक से समझ में आ जाएं तो हम अपने घर में वैकुंठ उतार सकते हैं।
हमारे परिवार अवकाश के श्रेष्ठ स्थान हैं। यहां आकर ऐसी रिक्तता, शून्यता और शांति मिल सकती है जिसकी तलाश में हम यहां-वहां भागते फिरते हैं।
तो अवकाश को अपने परिवार से ठीक से जोडें। जब भी घर मे आएं, खुद को समझाइए कि यह अवकाश का क्षेत्र है, यहां हमें रिक्त होना है।
घर में एक प्रयोग करिए…। अवकाश का मतलब यूं समझिए कि आप अपने भीतर रिक्तता के कारण दूर खड़े होकर स्वयं को ही देख रहे हैं।
बात सुनने में कठिन लग सकती है, परंतु अभ्यास से धीरे-धीरे समझ में आ जाएगी कि घर के बाहर हम दूसरों से संचालित रहते थे, पर घर आने के बाद चूंकि अवकाश में उतरे हैं, इसलिए अब हमार संचालन स्वयं ही करेंगे |
जब घर के बाहर होंगे तो एक तो आप होंगे जो कुछ कर रहे होंगे और दूसरे वो सब लोग जिनके प्रति आप कोठ्र क्रिया कर रहे होंगे।
लेकिन घर आने पर जैसे ही खुद को अवकाश में उतारेंगे तो तीन लोग हो जाएंगे- एक आप करने वाले, दूसरे जिनके लिए कर रहे हैं और तीसरे आप ही देखने वाले।
ऐसा करते हुए अपने घर के सदस्यों के इतने निकट पहुंच जाएंगे, जिसकी उनको वर्षो से चाहत होगी। बस, यहीं से घर स्वर्ग हो जाता है।