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स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएँ

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swami vivekanand
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स्वामी विवेकानंद एक ऐसे प्रखर युवा संन्यासी थे, जिनके विचारों को अपनाकर हम जीवन के मर्म को समझ सकते हैं। स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणास्त्रोत समझ सकते हैं, आदर्श हैं।

उन्होंने सदैव अपने विचारों से व कार्यो से लोगो का मार्गदर्शन किया।

उन्होंने मात्र 31 साल का जीवन जिया, इसके बावजूद उन्होंने अपने विचारों व कार्याे से पूरे विश्व को एक नई दिशा प्रदान की। उनके विचार शाश्वत हैं, प्रासंगिक हैं।

उनके ऐसे ही कुछ विचारों को अपने जीवन में अपनाकर हम न केवल स्वयं का, बल्कि अनेकों का कल्याण कर सकते हैं। इनमें से कुछ विचार इस प्रकार हैः-

1 आत्मविश्वासी बनें

स्वामी विवेकानंद के अनुसार-आस्तिक वही है, जो खुद पर विश्वास करे। कोई व्यक्ति भगवान पर विश्वास करता है, लेकिन खुद पर विश्वास नहीं करता है, तो वह नास्तिक है। तात्पर्य यह है कि आत्मविश्वास सबसे महत्वूपर्ण है। स्वयं पर भरोसा रखने से ही व्यक्ति अपने जीवन में कोई कार्य कर सकता है।

2 स्वस्थ रखें तन-मन

आत्मविश्वास को मजबूत करने के लिए स्वामी विवेकानंद ने तन और मन को मजबूत नाने की शिक्षा दी है। उन्होनें कहा है- गीता वीरों के लिए है, कायरों के लिए नहीं अर्थात्- ज्ञान प्राप्त करने के लिए पहले शरीर और मन को मजबूत बनाओ।

3 हीनता-बोध को दूर करें

स्वामी विवेकानंद ने लोगों को हीनभावना दूर करने के लिए शिक्षा दी है। उनका कहना था- हम स्वयं को शरीर नहीं, आत्मा समझें।

ऐसी आत्मा, जो शक्तिशाली परमात्मा का अंश है। इससे हीनता-बोध समाप्त होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। इसलिए कभी भी ऐसी सोच नह रखें कि मैं कमजोर, पापी या दुःखी हूँ ।

4 संयम-अनुशासन रखें

खुद पर नियंत्रण रखना संयम कहलाता है। संयमी व्यक्ति सारे व्यवधानों के बीच भी अपने कार्य को सहजता से करते हुए आगे बढ़ता रहता है।

सेवा की भावना, शांति, कर्मठता आदि गुण, संयम से आते हैं। संयमी व्यक्ति तनाव से मुक्त होता है, इसलिए वह हर काम गुणवत्ता से करता है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा है- ‘‘किसी भी क्षेत्र में शासन वही व्यक्ति कर सकता है, जो खुद अनुशासित होता है।‘‘

5 भय को दें तिलांजलि

इस ऐहिक जगत में अथवा आध्यात्मिक जगत में भय ही पतन तथा पाप का कारण है।

भय से ही दुःख होता है, यही मृत्यु का कारण है तथा इसी के कारण सारी बुराई होती है और भय होता क्यों है? आत्मस्वरूप के अज्ञान के कारण हममें से प्रत्येक सम्राटों के सम्राट का भी उत्तराधिकारी है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार – हमेशा यह सोचें कि मेरा जन्म कोई बड़ा काय्र करने के लिए हुआ है। यह सोचकर बिना किसी से भयभीत हुए, अपने कार्य को ईश्वर का आदेश समझकर करें।

भय तब दूर हो जाएगा, जब हम खुद को शाश्वत आत्मा मानेंगे, नश्वर शरीर नहीं।

6 स्वावलंबी बनें

स्वामी विवेकानंद का कहना था- भाग्य पर भरोसा नह करें, बल्कि अपने कर्माे से अपना भाग्य खुद गढ़ें।

उठो, साहसी और शक्तिमान बनो, इसमें उन्होंने आत्मनिर्भर बनने का सूत्र दिया है।

स्वामी विवेकानंद का कहना था- सारी शक्ति तुम्हारे अंदर ही है। तुम्हीं अपने मददगार हो, कोई दूसरा तुम्हारी मदद नहीं कर सकता ।

भगवान भी उसी की मदद करता है, जो अपनी मदद खुद करता है। इसलिए स्वावलंबी बनें।

7 सेवा परमो धर्मः

स्वामी विवेकानंद ने निस्स्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करने को सबसे बड़ा कर्म माना है, क्योंकि सेवा भाव के उदय होने से व्यक्ति दूसरों के दुःखों को दूर करने की चेष्टाा में अपने दुःखों या परेशानियों को भूल जाता है और इससे उसकी तन-मन की सामथ्र्य भी बढ़ती है।

8 आत्मशक्ति जगाएँ

स्वामी विवेकानंद के अनुसार-आत्मा परम शक्तिशाली है, यही ईश्वर है। इसलिए अपने आत्मतत्त्व को पहचानकर उसकी शक्ति को जगाएँ।

तब आप स्वंय को ऊर्जावान महसूस करेंगे।

असफलता से परेशान होकर अपने प्रयासों को छोंडें नही।

उपनषिद् में भी ऐसा ही कहा है-‘उत्त्ष्ठित जाग्रत प्रात्य वरान्निबोधत‘- अर्थात उठो, जागो और लक्ष्यप्राप्ति होने तक रूको मत।

9 दुर्बलताओं को त्यागें और शक्तिमान बनें

स्वामी विवेकानंद के अनुसार- उपनिषदों का प्रत्येक पृष्ठ मुझे शक्ति संदेश देता है।

यह चिंतन विशेष रूप से स्मरण रखने योग्य है, समस्त जीवन में मैंने यही महाशिक्षा प्राप्त की है। उपनिषद् करते हैं- हे मानव! तेजस्वी बनो, दुर्बलता को त्योगो।

स्वामी विवेकानंद का कहना था- समस्त शक्ति तुम्हारे भीतर है, तुम कुछ भी कर सकते हो और सब कुछ कर सकते हो, ऐसा विश्वास करो।

यह मत विश्वास करो कि तुम दुर्बल हो। तुममें सारी शक्ति अंतर्निहित है। तत्पर हो जाओ और तुममें जो देवत्व छिपा हुआ है, उसे प्रकट करो।

10 मनुष्य बनें

हमें ऐसे धर्म की आवश्यकता है, जिससे हम मनुष्य बन सकें। हमें ऐसे सिद्धांतों की जरूरत है, जिनसे हम मनुष्य हो सकें। हमें ऐसी सर्वांगीण शिक्षा की आवश्यकता है, जो हमें मनुष्य बना सके।

11 सत्य को पहचानें

जो भी तुमको शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से दुर्बल बनाए, उसे जहर की भाँति त्याग दो।

उसमें जीवनीशक्ति नहीं है, वह कभी सत्य नहीं हो सकता। सत्य तो बलप्रद है, वह पवित्र है, वह ज्ञानस्वरूप है।

सत्य तो वह है- जो हमें शक्ति दे, जो हृदय के अंधकार को दूर कर दे।

12 कार्य में हों तत्पर

मन की प्रवृत्ति के अनुसार कार्य मिलने पर अत्यंत मूर्ख व्यक्ति भी उसे कर सकता है, लेकिन सब कामों को जो अपने मन के अनुकूल बना लेता है, वही बुद्धिमान है। कोई भी काम छोटा नहीं है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार- संसार में जब आए हो, तब एक स्मृति छोड़कर जाओ। कितने दिनों के लिए यह जीवन है? इसलिए अपने कार्यों में लग जाओ।

वरना पेड़-पत्थर भी तो पैदा होते तथा नष्ट होते हैं। इसलिए चुपचाप बैठे रहने से कार्य न होगा। निरंतर उन्नति के लिए चेष्टा करते रहनी होगी।

13 धार्मिक झगड़ों में न पड़ें

स्वामी जी का कहना था कि धर्म के बारे में कभी झगड़ा मत करो।

धर्म संबंधी सभी झगड़ा-फसादों मे से केवल यह प्रकट होता है कि यहाँ आध्यात्मिकता नहीं है।

धार्मिक झगड़े सदा खोखली बातों के लिए होते है। जब पवित्रता नहीं रहती, तब आध्यात्मिकता विदा हो जाती है और आत्मा को नीरस बना देती है, तब झगड़े शुरू होते है।

14 दान दें

दान से बढ़कर और कोई धर्म नहीं है। सबसे अधम मनुष्य वह है, जिसका हाथ सदा खिंचा रहता है और जो अपने ही लिए सब पदार्थो को लेने मे लगा रहता है और सबसे उत्तम पुरूष वह है, जिसका हाथ हमेशा खुला रहता है।

हाथ इसीलिए बनाए गए हैं कि सदा देते रहो। तुम स्वंय भूखों मर रहे हो हो तो भी अपनी रोटी का अंतिम टुकड़ा दूसरे को दे डालो।

यदि दूसरे को देकर भूख से तुम्हारी मृत्यु भी हो जाए तो क्षण भर में ही तुम मुक्त हो जाओगे, तत्क्षण पूर्ण हो जाओगे, उसी क्षण तुम ईश्वर हो जाओगे।