अक्ल बड़ी या भैंस? इस कहावत को लेकर आज भी लोग उलझ जाते हैं, लेकिन समझ नहीं आता कि अक्ल और भैंस का क्या संबंध है?
दार्शनिक लोग कहते हैं भैंस ठस होती है, बिल्कुल अक्ल नहीं लगाती, लेकिन उसकी उपयोगिता बहुत है।
भले ही कहा यह जाता है कि भैंस का दूध प्रमादी है और पीने वाला आलसी हो जाता है, लेकिन लगभग सारे सक्रिय लोग भैंस का दूध पी रहे है।
फिर भी यह तय है कि भैंस में अक्ल नहीं होती, केवल उसकी उपयोगिता के कारण लोग उसका मान करते है। भैंस अपने प्रमाद के कारण प्रसिद्ध है, मनुष्य की अक्ल-बुद्धि अपने प्रवाह के कारण मानी जाती है।
बुद्धि में बहुत तीव्र प्रवाह होता है। कहां से कहां पहुंच जाती है, बड़े से बड़े रहस्य हो उजागर कर सकती है। फिर मनुष्य की अक्ल तो दो भागों में बंटी हुई है।
पुरूष की अक्ल अलग और स्त्री की अलग। इसका शिक्षा से कोई संबंध नहीं है। शिक्षा ऊपर का आवरण है, भीतर अक्ल चलती है, जब जिसकी बुद्धि चल जाए, समस्या का निदान निकल आए, वह अकलमंद।
बुद्धि खूब परिष्कृत हो जाए तो मेधा बन जाती है। इसमें सतोगुुण, खान पान और नींद का बड़ा महत्व होता है।
जो लोग नींद पर नियंत्रण पा लेंगे, खानपान शुद्ध रखेंगे और जो अपने भीतर सतोगुण की वृद्धि करेंगे उनकी बुद्धि बहुत जल्दी मेधा में बदल जाएगी।
वहीं बुद्धि यदि रजोतमोगुण से जुड़ी रही तो वह लगभग भैंस जैसी हो जाएगी। शायद इसीलिए यह कहावत बनी है कि अक्ल बड़ी या भैंस?
-पं विजयशंकर मेहता ( From जीने की राह)