जीवन युद्ध है, इसलिए परमात्मा से जुड़े रहें।

जीवन में जब कोई संकट आता है तो हमें परमात्मा की निकटता जल्दी मिल जाती है।

दुख में मनुष्य भगवान के और निकट चला जाता हैं जब भगवान के निकट जाएं, उनसे बात करें तो उसमें करूणा हो और यदि कुछ मांगना हो तो कृपा मांगे।

श्रीराम-रावण युद्ध में कुंभकर्ण का ऐसा आतंक छाया कि वानर घबराकर भागने लगे।

ऐसा लगा कि थोड़ी देर और कुंभकर्ण जीवित रहा तो कोई वानर नही बचेगा।

तब वे रामजी के पास गए कि रक्षा किजिए ।

यहां तुलसीदासजी ने लिखा-

सकरून बचन सुनत भगवाना। चले सुधारि सरासन बाना।।

वानरो की करूणाभरी बात सुनते ही भगवान धनुषबाण उठाकर चले।

जीवन में कभी ऐसा संघर्ष आ जाए तो परमात्मा से करूणायुक्त चर्चा कीजिए।

उनसे कहना हम आपसे सांसारिक चीजे नही मांगते , वह तो हमें ही अर्जित करना है।

आप तो बस, कृपा कर दीजिए। यहां शब्दों पर ध्यान दीजिए कि ‘करूणाभरे वचन सुनते ही भगवान चल पड़े ‘।

आगे लिखा है-

‘राम सेन निज पाछें घाली ‘।

भगवान इतनी सुरक्षा देगा कि हमको अपने पीछे कर लेगा।

जीवन भी ऐसा ही युद्ध है, इसलिए जिंदगी में परमात्मा से जुड़े रहिए।

शेर की गुफा में हाथी के मस्तक पर जा गजमुक्त मणि होती है, वह फिर भी मिल सकती है, लेकिन गीदड़ के घर में जाएंगे तो मांस-हड्डियों के अलावा कुछ नही मिलेगा।

इसलिए संबंध रखिए अच्छे लोगो से, महापुरूषों से, उस ईश्वर से। वह परमशक्ति कुछ ऐसा देगी जो आपके जीवन युद्ध में काम आएगा।

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