लक्ष्मी पाने का सबसे सिद्ध मंत्र श्रीसूक्त ऋग्वेद में उल्लेख

लक्ष्मी पाने का सबसे सिद्ध मंत्र

लक्ष्मी पाने का सबसे सिद्ध मंत्र श्रीसूक्त
ऋग्वेद में इसका उल्लेख, देवराज इंद्र ने इसी से ऐश्वर्य पाया।

श्रीसूक्त का पाठ लक्ष्मी के आह्यन का सबसे सरल साधन है। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहते है। देश के हर लक्ष्मी मंदिर में इसका पाठ रोज होता है। यह लक्ष्मी की सबसे पुरानी आराधना है।

इसका उल्लेख चारों वेद में से सबसे ऋग्वेद में है। इंद्र ने श्रीसूक्त की रचना की थी और इसी से वे लक्ष्मी आराधना करते थे। श्री साधना से ही इंद्र ने ऐश्वर्य हासिल किया था।

श्रीसूक्त के 15 मंत्रः लक्ष्मी पूजन में इनके पाठ से धन-धान्य, विजय, यश, स्वास्थ्य, ऐश्वर्य की प्राप्ति

ऊँ हिरण्वर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।

भावार्थ:- भीतर की ऊर्जा यानी अग्नि का पूरा उपयोग करने का मुझे सामर्थ्य दें। सूर्य और चंद्रमा के समान लक्ष्मी की मुझ पर कृपा हो।

तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।

भावार्थ:- जो कुछ प्राप्त होना है, कर्मो की ऊर्जा से मिलना है। विवाह, मकान, वाहन, संतान के लिए लक्ष्मी मुझे आशीर्वाद दे।

अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप हृये, श्रीर्मा देवीर्जुषताम्।।

भावार्थ:- जो संपन्नता मुझे मिली है वह और बढ़े। मैं उनमें संतुष्ट और प्रसन्न रहूँ। लक्ष्मी संपन्नता के रथ पर आए, मुझे आशीष दें।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामाdra ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
प स्थितां पùवर्णां तामिहोप हृये श्रियम्।।

भावार्थ:- सफलता-असफलता में समदृष्टि रहूँ। मंद-मंद मुस्कराने वाली, कमल पर विराजित व पùवर्णां लक्ष्मी मुझ पर प्रसन्न हों।

चन्द्रां प्राभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पùिनीमीं शरणमहं प्रपध्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।।

भावार्थ:- मैं शांत प्रकृति बनूं, भ्रम दूर हों, त्वरित निर्णय की क्षमता मिले। मेरी विपन्नता दूर हो जाए, इसलिए मैं आपकी शरण लेता हूँ।

आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथबिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।

भावार्थ:- प्रकृति से मेरा सामंजस्य बने। वृक्षों में श्रेष्ठ बिल्व वृक्ष के फल बाहरी और भीतर के विपन्नता को दूर करें।

उपैतु मां देवसखः किर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूऽस्मि राष्ट्रऽस्मिन्, किर्तिमृद्धिं ददातु मे।।

भावार्थ:- मैं उदार, करूणामयी और साहसी बनूं। आपकी कृपा से मुझे कीर्ति प्राप्त हो अर्थात मुझे धन और यश की प्राप्ति हो।

क्षुप्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीam नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद में गृहात।।

भावार्थ:- भूख और प्यास से मलिन अलक्ष्मी का नाश हो। जो ऊर्जा मुझे मिली है उसका उपयोग कर मैं विपन्नता से दूर रहूँ।

गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप हृये श्रियम्।।

भावार्थ:- घर, व्यापार, उद्योग, समाज में मधुर व्यवहार से मेरा काम निर्विघ्न पूर्ण हो। सब भूतों की स्वामी लक्ष्मी मुझ पर कृपा करें।

मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमत्रस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।

भावार्थ:- मैं मनोकामनाअइों को लक्ष्य बनाकर काम करूं। सिद्धि और वाणी की समृद्धि मुझे हासिल हो। यश देने वाली लक्ष्मी मेरे घर पधारें।

कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय में कुले मातरं पùमालिनीम्।।

भावार्थ:- उत्तम परिवार, संस्कारित संतान हो। कर्दम ऋषि पù की माला धारण करने वाली माता लक्ष्मी को मेरे कुल में स्थापित करें।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय में कुले।।

भावार्थ:- मैं लक्ष्मी पुत्र बनंू। लक्ष्मी पुत्र चिक्लीत आप मेरे घर में वास करें और माता लक्ष्मी देवी का मेरे कुल में निवास कराएं।

आद्र्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगला पùमालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदों म आ वह।।

भावार्थ:- मैं सेहतमंद बनूं। पुष्टिरूपा, चन्द्रमा के समान शुभ्र कांति से युक्त स्वर्णमयी लक्ष्मी देवी मेेरे यहां पधारें।

आद्र्रा यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।

भावार्थ:- दुष्टों का सामना करने का मुझमें साहस आए। मंगल दायिनी, सुन्दर वर्णवाली, सूर्य स्वरूपा लक्ष्मी मेरे घर पधारें।

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।

भावार्थ:- कभी नष्ट न होने वाली लक्ष्मी देवी मेरे घर पधारें, उनके आगमन से धन, अश्व और संतान प्राप्त हो।

Reference
Image

By admin