कार्तिक मास हिंदी पंचाग का आँठवा महिना है, कार्तिक के महीने में दामोदर भगवान की पूजा की जाती हैं।
यह महिना शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। कार्तिक माह भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है।
पुराणों में इस दिन स्नान, व्रत और तप करने वाले को मोक्ष को भागी बताया गया है।
कार्तिक मास के सन्दर्भ में स्कन्दपुराण में वर्णित है कि कार्तिक के समान कोई अन्य मास नहीं है। सतयुग के समान कोई युग नहीं है। वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है तथा गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है।
मान्यता है कि इस माह जो व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
कार्तिक मास में भगवान दामोदर यानी ओखल से बंधे हुए श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिए।
भगवान दामोदर को दीप दान करने का इस माह में विशेष महत्व है। दीप दान का अर्थ यहां दीप प्रज्जवलित कर दामोदर भगवान की आरती करने से है।
इस महीने तप एवम पूजा पाठ उपवास का महत्व होता है, जिसके फलस्वरूप जीवन में वैभव की प्राप्ति होती है
इस माह में तप के फलस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। इस माह के श्रद्धा से पालन करने पर दीन दुखियों का उद्धार होता है, जिसका महत्त्व स्वयम विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा था।
इस माह के प्रताप से रोगियों के रोग दूर होते हैं। जीवन विलासिता से मुक्ति मिलती हैं।
मान्यता है कि कार्तिक मास में किया गया धार्मिक कार्य अनन्त गुणा फलदायी होता है। शास्त्रों के अनुसार ये महीना पूरे साल का सबसे पवित्र महीना होता है।
इसी महीने में ज्यादातार व्रत और त्यौहार आते है। कार्तिक मास भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
कार्तिक मास में भगवान कृष्ण के दामोदर रूप की उपासना करने का महत्व है।
बताया जाता है कि जो लोग इस दौरान भगवान कृष्ण के दामोदर स्वरूप के दर्शन करते हैं और उनकी आराधना करते हैं उनके सभी पापों का नाश होता है।
श्रीकृष्ण को प्रिय है कार्तिक मास
भगवान श्री कृष्ण को कार्तिक मास अत्यंत प्रिय है।
भगवान श्रीकृष्ण ने इस मास की व्याख्या करते हुए है,’पौधों में तुलसी मुझे प्रिय है, मासों में कार्तिक मुझे प्रिय है, दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के निकट है.’ इसीलिए इस मास में श्री हरि के साथ तुलसी और शालीग्राम के पूजन से भी पुण्य मिलता है तथा पुरुषार्थ चातुष्ट्य की प्राप्ति होती है.।
शास्त्रों में कार्तिक मास का बहुत अधिक महत्व बताया गया है। कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में यह बात कही है कि उन्हें कार्तिक मास अत्यंत प्रिय है और कार्तिक मास उन्हीं का ही एक स्वरूप है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि महीनों में मैं कार्तिक हूं।
प्रयाग में स्नान करने से, काशी में मृत्यु होने से और वेदों का स्वाध्याय करने से जिस फल की प्राप्ति होती है।
वह सब कार्तिक मास में तुलसी पूजन करने से प्राप्त हो जाता है। जो मनुष्य कार्तिक मास में संध्याकाल में श्री हरि के नाम से तिल के तेल दीपदान करते हैं, उनका जीवन सदैव आलोकित प्रकाशित होता है।
वह अतुल लक्ष्मी रूप, सौभाग्य तथा अक्षय संपत्ति पाता है. शास्त्रों में कार्तिक मास का बहुत अधिक महत्व बताया गया है।
कार्तिक मास की महिमा का वर्णन पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में है, कार्तिक मास (Kartik Month) के 13 नियम हैं, जिनका पालन करने वाला लौकिक संसार में ऐश्वर्य के साथ मृत्योपरांत श्रीहरि के चरणों में स्थान प्राप्त करता है।
कार्तिक मास (Kartik Mass) पूजा के नियम
1.सुबह जल्दी उठकर स्नान अदि नित्यकर्म करके मंगला आरती (प्रातः 4:15 बजे) से अपना दिन शुरू करें।
2.ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 से 7 बजे तक अधिकतम माला का जाप करें।
3.प्रतिदिन हरे कृष्णा महामंत्र की कम से कम 16 माला का जाप करें। एकादशी के दिन ज्यादा से ज्यादा माला का जाप करें।
4.प्रतिदिन तुलसी पूजा करें, जल चढ़ाएं और परिक्रमा करें।
5.चाय, कॉफी, प्याज , लहसुन आदि का सेवन न करें।
6.केवल कृष्ण प्रसाद ही ग्रहण करें।
7.विशेषत: दामोदर लीला एव गोवर्धन लीला गजेंद्र मोक्ष कथा पढ़ें (भागवतम स्कन्द )।
8.भगवान दामोदर की तस्वीर अपने घर में अवश्ये रखें।
9.दमोदराषटकम का प्रतिदिन पाठ करें।
10.भगवान दामोदर को प्रतिदिन दीपदान करें।
11.कार्तिक मास में उड़द दाल का निषेध करें।
12. पूरा महीना ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
13. शुद्ध भक्तों को दान दें।
कार्तिक माह में आने वाले प्रमुख त्यौहार हैं. पूरा महिना कई त्यौहार मनाये जाते हैं।
कार्तिक माह में कई तरह के पाठ, भगवत गीता आदि सुनने का महत्व होता हैं। यह पूरा महीने मनुष्य जाति को अनेक प्रकार के नियमों में बांधता है।
कार्तिक में ही बड़े – बड़े त्यौहार मनाये जाते हैं, जो भारत देश के प्रमुख त्यौहारों में से हैं।
वैसे तो भारत वर्ष में वर्ष भर ही त्यौहारों का ताता लगा रहता है, लेकिन चार माह के त्यौहार तप एवम पूजा पाठ की दृष्टि से अहम् माने जाते है।
कार्तिक मॉस के त्यौहार (Kartika Festival)
1 करवाचौथ : कृष्ण पक्ष चतुर्थी
2 अहौई अष्टमी एवम कालाष्टमी : कृष्ण पक्ष अष्टमी
3 रामा एकादशी
4 धन तेरस
5 नरक चौदस
6 दिवाली, कमला जयंती
7 गोवर्धन पूजा अन्नकूट
8 भाई दूज / यम द्वितीया : शुक्ल पक्ष द्वितीय
9 कार्तिक छठ पूजा
10 गोपाष्टमी
11 अक्षय नवमी/ आँवला नवमी, जगदद्त्तात्री पूजा
12 देव उठनी एकदशी/ प्रबोधिनी
13 तुलसी विवाह
कार्तिक महीने का महत्व
1. हिंदू पंचांग के 12 मास में कार्तिक भगवान विष्णु का मास है। इसमें नक्षत्र-ग्रह योग, तिथि पर्व का क्रम धन, यश-ऐश्वर्य, लाभ, उत्तम स्वास्थ्य देता है।
2. प्राचीन काल में अलग-अलग महीनों में वर्ष की शुरूआत होने का उल्लेख मिलता है, लेकिन आधुनिक काल में वर्ष का आरम्भ भारत के विभिन्न भागों में कार्तिक या चैत्र मास में होता है।
3. इसी मास में शिव पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर राक्षस का वध किया था, इसलिए इसका नाम कार्तिक पड़ा, जो विजय देने वाला है।
4. कार्तिक महीने का माहात्म्य स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण में भी मिलता है।
5. कार्तिक मास के लगभग बीस दिन मनुष्य को देव आराधना द्वारा स्वयं को पुष्ट करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए इस महीने को मोक्ष का द्वार भी कहा गया है।
6. शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास में मनुष्य की सभी आवश्यकताओं, जैसे- उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नति, देव कृपा आदि का आध्यात्मिक समाधान बड़ी आसानी से हो जाता है।
कार्तिक माह में करने योग्य कार्य
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान
कार्तिक मास में रोजाना सुबह ब्रह्म मुहूर्त मे पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। अगर ऐसा करना संभव ना हो तो आप किसी भी पवित्र नदी के पानी को अपने नहाने की बाल्टी के पानी में मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं।
कार्तिक माह में दान
कार्तिक माह में दान का भी विशेष महत्व होता हैं। इस पुरे माह में गरीबो एवम ब्रह्मणों को दान दिया जाता हैं।
इन दिनों में तुलसी दान, अन्न दान, गाय दान एवम आँवले के पौधे के दान का महत्व सर्वाधिक बताया जाता हैं।
कार्तिक में पशुओं को भी हरा चारा खिलाने का महत्व होता हैं। कार्तिक मास के दौरान अधिक-से-अधिक दान करना चाहिए।
प्रयास करें कि फल, मिठाई और वस्त्रों का दान अवश्य करें। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास में दान करने का फल अधिक मिलता है। इसलिए इस महीने में दान को बहुत अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है।
कार्तिक मास में दीपदान
शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास में सबसे प्रमुख काम दीपदान करना बताया गया है।
इस महीने में नदी, पोखर, तालाब आदि में दीपदान किया जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।कार्तिक माह में दीपदान का विशेष महत्व होता है।
इस दिन पवित्र नदियों में, मंदिरों में दीप दान किया जाता हैं. साथ ही आकाश में भी दीप छोड़े जाते हैं. यह कार्य शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता हैं।
दीप दान के पीछे का सार यह हैं कि इससे घर में धन आता हैं। कार्तिक में लक्ष्मी जी के लिए दीप जलाया जाता हैं और संकेत दिया जाता हैं अब जीवन में अंधकार दूर होकर प्रकाश देने की कृपा करें।
कार्तिक में घर के मंदिर, वृंदावन, नदी के तट एवम शयन कक्ष में दीपक लगाने का माह्त्य पुराणों में मिलता है। इस बात का ध्यान रखें कि कार्तिक मास में दीपदान करने का महत्व बहुत अधिक है।
इसलिए नियमित रूप से सुबह और शाम को दीपदान करें। यहां दीपदान करने का अर्थ दीपक जलाकर भगवान कृष्ण की पूजा करने से है।
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए मंत्र जाप करें। भगवान विष्णु को कार्तिक मास अत्यंत प्रिय हैं।
इसलिए वैष्णव विशेष तौर पर कार्तिक मास में यह प्रयास करते हैं कि अधिक-से-अधिक नाम जाप कर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का प्रयास किया
कार्तिक माह से तुलसी का पूजन
तुलसी पूजा इस महीने में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है।
वैसे तो हर मास में तुलसी का सेवन व आराधना करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है।
कार्तिक में तुलसी की पूजा की जाती हैं और तुलसी के पत्ते खाये जाते हैं। इससे शरीर निरोग बनता हैं।
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके सूर्य देवता एवम तुलसी के पौधे को जल चढ़ाया जाता हैं. कार्तिक में तुलसी के पौधे का दान दिया जाता हैं।
कार्तिक में भजन
कार्तिक माह में श्रद्धालु मंदिरों में भजन करते हैं। अपने घरों में भी भजन करवाते हैं।
आजकल यह कार्य भजन मंडली द्वारा किये जाते हैं। इन दिनों रामायण पाठ, भगवत गीता पाठ आदि का भी बहुत महत्व होता हैं।
इन दिनों खासतौर पर विष्णु एवम कृष्ण भक्ति की जाती हैं। इसलिए गुजरात में कार्तिक माह में अधिक रौनक दिखाई पड़ती हैं।
भूमि पर शयन
भूमि पर शयन भूमि पर सोना कार्तिक मास का प्रमुख काम माना गया है। भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं।
इससे मनुष्य का स्वभाव कोमल होता हैं उसमे निहित अहम का भाव खत्म हो जाता हैं।
कार्तिक मास में नहीं करने वाले कार्य
1. कातिक मास के दौरान किसी भी हिंसात्मक गतिविधि का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। बताया जाता है कि कार्तिक महीने के दौरान हिंसात्मक कार्यों को करने से या किसी की हत्या करने से बहुत अधिक पाप लगता है।
इस पाप का प्रायश्चित बहुत अधिक यत्न करने के बाद भी संभव नहीं हो पाता है।
2. कार्तिक माह में कई तरह के नियमो का पालन किया जाता है, जिससे मनुष्य के जीवन में त्याग एवम सैयम के भाव उत्पन्न होते हैं.
3 . कार्तिक माह मे मॉस, मदिरा आदि व्यसन का त्याग किया जाता हैं। कहीं कहीं पर तो प्याज, लहसुन, बैंगन आदि का सेवन भी निषेध माना जाता है।.
4. कार्तिक महीने में केवल एक बार नरक चतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) के दिन ही शरीर पर तेल लगाना चाहिए। कार्तिक मास में अन्य दिनों में तेल लगाना वर्जित है।
5. द्विदलन निषेध कार्तिक महीने में द्विदलन अर्थात उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई आदि नहीं खाना चाहिए।
6. ब्रह्मचर्य कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है। इसका पालन नहीं करने पर पति-पत्नी को दोष लगता है और इसके अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं.
7. संयम रखें व्रती (व्रत करने वाला) को चाहिए कि वह तपस्वियों के समान व्यवहार करे। अर्थात कम बोले, किसी की निंदा या
देवउठनी एकादशी
हिंदू धर्म में सबसे शुभ और पुण्यदायी मानी जाने वाली एकादशी, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है।
यह जिसे हरिप्रबोधिनी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के बीच श्रीविष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर भादों शुक्ल एकादशी को करवट बदलते हैं।
पुण्य की वृद्धि और धर्म-कर्म में प्रवृति कराने वाले श्रीविष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी को निद्रा से जागते हैं। इसी कारण से सभी शास्त्रों इस एकादशी का फल अमोघ पुण्यफलदाई बताया गया है।
देवउठनी एकादशी दिवाली के बाद आती है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु निद्रा के बाद उठते हैं इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।
मान्यता है कि भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीर सागर में निद्रा करने के कारण चातुर्मास में विवाह और मांगलिक कार्य थम जाते हैं।
फिर देवोत्थान एकादशी पर भगवान के जागने के बाद शादी- विवाह जैसे सभी मांगलिक कार्य आरम्भ हो जाते हैं। इसके अलावा इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी विवाह का धार्मिक अनुष्ठान भी किया जाता है।
तुलसी विवाह का है विधान
इस दिन कई स्थानों पर शालिग्राम तुलसी विवाह का भी प्रावधान है। बता दें कि शालिग्राम भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप है।
मान्यता है कि इस बात का जिक्र मिलता है कि जलंधर नाम का एक असुर था। उसकी पत्नी का नाम वृंदा था जो बेहद पवित्र व सती थी।
उनके सतीत्व को भंग किये बगैर उस राक्षस को हरा पाना नामुमकिन था। ऐसे में भगवान विष्णु ने छलावा करके वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और राक्षस का संहार किया।
इस धोखे से कुपित होकर वृंदा ने श्री नारायण को श्राप दिया, जिसके प्रभाव से वो शिला में परिवर्तित हो गए।
इस कारण उन्हें शालिग्राम कहा जाता है। वहीं, वृंदा भी जलंधर के समीप ही सती हो गईं। अगले जन्म में तुलसी रूप में वृंदा ने पुनः जन्म लिया। भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि बगैर तुलसी दल के वो किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करेंगे।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने कहा कि कालांतर में शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा। देवताओं ने वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया।
इसलिए प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह कराया जाता है।
एकादशी पर हमें क्या नहीं करना चाहिए
एकादशी पर किसी भी पेड़-पौधों की पत्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए।
एकादशी वाले दिन पर बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए।
एकादशी वाले दिन पर संयम और सरल जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। इस दिन कम से कम बोलने की किसी कोशिश करनी चाहिए और भूल से भी किसी को कड़वी बातें नहीं बोलनी चाहिए।
हिंदू शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
एकादशी वाले दिन पर किसी अन्य के द्वारा दिया गया भोजन नहीं करना चाहिए।
एकादशी पर मन में किसी के प्रति विकार नहीं उत्पन्न करना चाहिए ।
इस तिथि पर गोभी, पालक, शलजम आदि का सेवन न करें।
देवउठनी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक मास की समाप्ति पर कार्तिक पूर्णिमा का भी बड़ा विशेष महत्व है जिसे तीर्थ स्नान और दीपदान की दृष्टि से वर्ष का सबसे श्रेष्ठ समय माना गया है इसे देव–दीपावली भी कहते
कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा के दिन कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) मनाई जाती है।
हिंदु धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन को काफी पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की खास पूजा और व्रत करने से घर में यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान (Deepdan) और गंगा स्नान का बेहद महत्व है। इस दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सभी जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।
कार्तिक पूर्णिमा मे पवित्र नदियों में ब्रह्ममुहूर्त में स्नान का बहुत अधिक महत्व होता हैं। घर की महिलायें सुबह जल्दी उठ स्नान करती हैं, यह स्नान कुँवारी एवम वैवाहिक दोनों के लिए श्रेष्ठ हैं।
इस माह दीपदान करने के माहतम्य के बारे में स्वयं भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को उन्होंने नारद जी को और नारद मुनि ने महाराज पृथु को बताया है। इसलिए इस माह में किसी नदी या पोखर में दीपदान अवश्य करें।
मान्यता है कि इस दिन इस चावल दान करना बेहद शुभ होता है। दअसल चावल का संबंध च्रंद से है इसलिए कहते हैं कि ये शुभ फल देता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन घर को साफ रखना चाहिए।
इसी के साथ ही घर के दरवाजे पर रंगोली बनाना भी बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि कार्तिक मास की पूर्णिमा को दीप जलाने से भगवान विष्णु की खास कृपा मिलती है।
घर में धन, यश और कीर्ति आती है। इसीलिए इस दिन लोग विष्णु जी का ध्यान करते हुए मंदिर, पीपल, चौराहे या फिर नदी किनारे बड़ा दिया जलाते हैं।
दीप खासकर मंदिरों से जलाए जाते हैं। इस दिन मंदिर दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है। दीपदान मिट्टी के दीयों में घी या तिल का तेल डालकर करें।
कार्तिक पूर्णिमा, देव भारत में वर्ष के चार माह सभी धर्मो में विशेष त्यौहार चलते रहते हैं. इन सभी त्यौहारों का उद्देश्य ईश्वर के प्रति आस्था एवम प्रेम एकता का भाव जगाना हैं।
चौमासे या चातुर्मास के चार महीनो की विशेषता सभी प्रान्तों में अलग-अलग बताई जाती हैं और उसका निर्वाह किया जाता है, हिंदी कैलेंडर में सबसे अंतिम माह कार्तिक का होता हैं. ।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजे गए थे।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका नक्षत्र में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है।
इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
पौराणिक कथा के मुताबिक तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे – तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया।
अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो।
तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।
तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके।
एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।
तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमलाक्ष के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया।
तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनीं। चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा।
स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया।
भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही त्रिपुर रथ के एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया।
त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।
यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से
मान्यता है कि इस दिन भक्त सभी देवी देवताओं को एक साथ प्रसन्न कर सकते हैं।
इस विशेष मौके पर विधि-विधान से पूजा अर्चना करना ना केवल पवित्र माना जाता है बल्कि इससे समृद्धि भी आती है।
इसके साथ ही इससे सभी कष्ट दूर हो सकते हैं। इस दिन पूजा करने से कुंडली, धन और शनि दोनों के ही दोष दूर हो जाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा–विधि (Kartik Purnima Puja-Vidhi)
आप प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर सूर्य देव को जल अर्पित करें. जल में चावल और लाल फूल भी डालें।
सुबह स्नान के बाद घर के मुख्यद्वार पर अपने हाथों से आम के पत्तों का तोरण बनाकर बांधे।
सुबह के वक्त मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर दीपदान करें।
सरसों का तेल, तिल, काले वस्त्र आदि किसी जरूरतमंद को दान करें।
भगवान विष्णु की पूजा करें।
श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें या फिर भगवान विष्णु के इस मंत्र को पढ़ें. – ‘नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे। सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:।।‘
घर में हवन या पूजन करें।
घी, अन्न या खाने की कोई भी वस्तु दान करें।
शाम के समय भी मंदिर में दीपदान करें।
सायं काल में तुलसी के पास दीपक जलाएं और उनकी परिक्रमा करें।
इस दिन ब्राह्मण के साथ ही अपनी बहन, बहन के लड़के, यानी भान्जे, बुआ के बेटे, मामा को भी दान स्वरूप कुछ देना चाहिए।
जब चंद्रोदय हो रहा हो, तो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिवजी का आशीर्वाद मिलता है।