हमारे शरीर में बैक्टीरिया पहले से होते हैं। जैसे ही हमारे शरीर का इम्युनिटी पावर कमजोर होता है तो छोटे-छोटे वायरस भी थोड़ा सा मौसम बदलते ही हमारे शरीर पर हमला कर देते है।
यदि मैं मजबूत रहती हूँ तो बाहर का मौसम भले बदले, तूफान हो, बर्फ पड़े हमारे ऊपर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
मैं अपना ध्यान नहीं रखूं और सिर्फ बोलती रहूं कि मौसम ठीक नहीं है, सर्दी इतनी बढ़ गई, गर्मी बढ़ गई है तो बीमार पड़ना ही है।
स्वस्थ रहना है या बीमार रहना है ये दोनो विकल्प हमारे पास है। जैसे हम अपने शरीर का ध्यान रखते है वैसे ही हमें अपने मन का भी ध्यान रखना होगा। यह उस समय नहीं होगा जब परिस्थितियां आती है।
आप अपने शरीर के अंदर ताकत तब नहीं भरते है जब मौसम बदलता है। आप हर दिन शरीर का ध्यान रखते हैं, फिर चाहे बाहर कितना भी परिवर्तन क्यों न आए वह आपको अंदर से प्रभावित नहीं कर सकता है।
शरीर के अंदर शक्ति है कि वह बाहर के परिवर्तन के साथ शरीर का सामंजस्य बैठाकर संतुलन बना लेती है। अगर बाहर से इन्फेक्शन आ रहा है तो शरीर का इम्युनिटी पावर उसे कब खत्म कर देता है हमें इसका पता भी नहीं चलता है।
और हम सामान्य रूप से कार्य करते रहते है। उसी तरह अगर हम न का भी ध्यान रखें उसकी रोज सफाई करें, पोषण दें, व्यायाम करें तो बाहर कब क्या होगा और चला जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा।
जब जैसी परिस्थिति होती है वैसी ही हमारी खुशी भी हो जाती है क्योंकि यह कुछ-कुछ बाहर की बातों पर निर्भर करती है।
लेकिन इसकी अपनी कोई तकत नहीं है जो हमारी खुशी को प्रभावित कर सके। आप अच्छा बोलो तो खुश, आप अच्छा नहीं बोलो तो भी खुश।
इसलिए हमने पहले भी कहा था कि ध्यान रखना। बैक्टीरिया भले आए, कोई बहुत कुछ बुरा-भला भी कह दे, कोई नाराज हो जाएगा, बच्चे संतुष्ट नहीं होंगे, बाॅस गुस्सा हो जाएगा, ये सब बैक्टीरिया ही तो हैं जो बाहर से आते है।
आज बच्चे बहुत अच्छी तरह से बात कर रहे हैं कल अचानक उन्होंने कुछ गलत बोल दिया, ये सब परिर्वतन ही तो है जो मौसम में बदलाव लाया है। हमारे अंदर वो शक्ति है जो हम इसका सामना कर सकते है।
जो स्वयं को सुरक्षित नहीं करेगा वो तो कष्ट करेगा ही फिर चाहे वो शारीरिक हो या भावनाओं के रूप में हो। क्योंकि हमें भावनात्मक सुरक्षा के बाजाए शारीरिक सुरक्षा करना आसान लगता है।
इसलिए हम इमोशनल हेल्थ की तरफ ध्या नही नहीं देते है। जब हम अपनी इमोशनल हेल्थ कि सुरक्षा करना शुरू कर देंगे तब यह भी आसान हो जाएगा।
फिर चाहे कोई कुछ भी बोले हमें फर्क नहीं पड़ेगा। एक दिन आप अपने आपको जांचना कि किसी ने आपसे बात नहीं की, बेईज्जती कर दी, अपमानित कर दिया, कुछ उल्टा-सीधा बोल दिया, तो ऐसी परिस्थिति में मैं क्या कर सकती हूँ ।
क्या मैं इतनी कमजोर हूँ कि हर किसी के व्यवहार को अपने ऊपर हावी होने दूं। अगर हम अपना सारा नियंत्रण बाहर को दे देंगे तो दुखी हो जाएंगे। क्योंकि बाहर चुनौतियां बहुत ज्यादा है।
बी.के. शिवानी, ब्रह्याकुमारी