यदि आप शांति की तलाश में हैं तो सबसे पहले इस बात को गांठ बांध लीजिए कि स्वयं के अलावान तो आपको कोई शांत कर सकता है और न ही कोई दूसरा अशांत कर सकता है।
इसके बाद समझना यह होगा कि जब हमेंही करना है तो कैसे करेंगे तो दूसरी शर्त यह होगी कि शांति-अशांति के चक्कर में किसी और के पास तो जाना ही नहीं है।
अपने ही भीतर उतरिए। अब भीतर ही उतरने पर क्या मिलेगा ? एक मन होत है जो दिखता नहीं।
हम उसका निर्माण करते हैं विचार व स्मृति से तो विचार शून्य स्मृति से मुक्त होकर उसे हटा भी सकते है ।
जैसे ही मन हटाए आप आत्मा के क्षेत्रमें पहुंच जाएंगे।
यह सवाल कई लोग उठाते हैं कि आत्मा होती क्या है?
तरीका मिल जाए आत्मा तक पहुंच भी जाएं तो दिखेगी कैसी ? दरअसल आत्मा दिखती नहीं। अनुभव होती है।
लेकिन फिर भी उसका रस है। एक बार उस तक पहुंच गए तो रग-रग में बहती महसूस होगी।
आत्मा का शरीर में निश्चित स्थान कुछ नहीं है। वह बहती रहती है।
जिन्हें आत्मातक पहुंचना हो वो कभी किसी कुए को खुदता जरूर देखें।
कुआं खोदने वाले मिट्टी हटा-हटाकर खोदते जाते हैं| जबतक कि पानी न मिल जाए।
ऐसे ही हमें लगातार हमारे ‘मैं’ की दुर्गुणों की परतें हटानी पड़ेगी।
आत्मा को कुएं की तरह खोदते जाएंगे तो एक दिन जैसे पानी कुंए को भर देता है|
ऐसे ही आत्मा पूरे व्यक्तित्व को लबालब कर देगी
और यहां आपकी शांति की तलाश पूरी हो जाएगी।