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दुख आना और होना दोना अलग हैं

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‘सुखी बसै संसार सब दुखिया रहे न कोय। यह अभिलाषा हम सबकी सो भगवन् पूरी होय।।

‘ इस पंक्ति को भक्त लोग बार-बार दोहराते है।

इसमें भक्त भगवान से कहता है- हे प्रभु, इस संसार को सुखी कर दो और ऐसी कृपा बरसाओ कि कोई दुखी न रहे भक्त का तो काम ही है मांगना, पर इस बात को सुनकर भगवान भी हंसते हुए कहते होंगे- तेरा भाव तो अच्छा है।

क्या बुराई है सुख मांगने मे। भगवान इसलिए हंसते हैं कि देखो, दुख तो आएंगे।

दुनिया में कोई सुख ऐसा नही बना जो बिना दुख को साथ लाए अकेला आया हो।

लेकिन, दुख आना और दुखी होना, इसमे फर्क है। दुख आए तो आने दो, यदि मुझसे जुड़े हो तो दुखी होने से बचे?

संतों ने कहा है- ईश्वर का स्मरण जब-जब बढ़ाओगे तब-तब दुखी होने से बच जाओगे ।

जब प्रभु स्मरण का प्रकाश प्रवेश करता है तो दुख रूपी अधंकार को जाना ही पड़ता है। ईश्वर के स्मरण का लाभ होता है कि वेदना, थकान, अशांति, पीड़ा, बेचैनी इन सबको हम अच्छी तरह से जान जाते हैं।

कोई लगातार ठीक से प्रभु स्मरण करे तो उसे एक बात समझ में आ जाती है कि हमारा शरीर अलग है, मन अलग है और आत्मा अलग है, दुखों का केन्द्र मन हैं।

ईश्वर के स्मरण से मन को समझना आसान हो जाता है और जिसने मन को समझ लिया, वह यह बात भी समझ जाएगा कि दुख आना अलग बात है, दुखी हो जाना बिलकुल अलग बात हैै।