शरीर को ‘रोगी‘ बनाने वाले तो बहुत से लोग है, परन्तु मन से योगी बहुत कम लोग बन पाते है। जो मन से योगी बन जाता है, उसे आध्यात्मिक और भौतिक सम्पदा की प्राप्ति होती है।
जिसके मन में दया न हो और जो हमेशा दुविधा में जीता है, उसका साथ छोड़ देना चाहिए।
राजा, रोग और पाप ये तीनों दुर्बलों को ही खाते है। ऐसा वेद, स्मृतियां और ज्ञानी लोग भी कहते है।
काम, क्रोध, लोभ और मोह का समूल नाश होने पर ही ईश्वर की कृपा बरसती है।
यह पूरा संसार ही क्षणभंगुर है। एक दिन सूरज, चांद, धरती, आकाश, हवा और पानी सब नष्ट हो जायेंगें, अविनाशी ईश्वर का ही अस्तित्व रहेगा।
एकाग्रता से ज्ञान की प्राप्ति होती है, एकाग्रता ही सभी नश्वर सिद्धियों का शाश्वत रहस्य है। दुष्टों का बल हिंसा है, स्त्रियों का बल धैर्य है और गुणवानों का बल क्षमा है।