प्रार्थना
हे
प्रभु! सत्कर्म करने के लिए सद्विचार की शक्ति हमारे भीतर बनी रहे।
हे ज्योतिर्मय! हे शुद्ध, बुद्ध, प्रदाता! हम सभी भक्तों का श्रद्धा भरा प्रणाम आपके श्रीचरणों में समर्पित है।
प्रभु! जीवन में अनेक आवश्यकताएं, इच्छाएं, मनुष्य में सर्वप्रथम विचार स्तर पर जागती हैं, तत्पश्चात वे कर्म में बदलती हैं।
उन कर्मों के कारण मनुष्य इस संसार में तरह-तरह के सुख-दुख से जुड़ता है, कर्म दूषित हुए तो वह भटकता है, भ्रमित होता है और दुःख भोगता है।
इसीलिए हे नाथ जो इच्छा व विचार हमारी अंतः शक्ति जगाए, हमें आपका प्रेम दिला सके, हमारे अंदर शंति ला सके, हमारा अपना और दूसरों का उद्धार कर सके, उस इच्छा शक्ति को ही आप हमें प्रदान कीजिए।
हे प्रभु! आप हमें वह सुबुद्धि प्रदान कीजिए, जिसके प्रकाश में हम उचित निर्णय लेकर उत्तम पथ पर अग्रसर हो सके।
हे प्रभु! ऐसी विवेकपूर्ण सुमति प्रदान कीजिए कि हम अच्छे-बुरे का भेद कर सके और सत्कर्म करने की शक्ति हमारे अन्दर बनी रहे।
हे नारायण! हे दयानिधान! आप ऐसी कृपा करें कि जिससे जीवने के अन्तिम क्षण तक हमारा शरीर कर्मशील बना रहे, कर्मठ बना रहे, हम सेवार करते रहें, लेकिन सेवा कराएं नहीं।
सदैव चेहरे पर मुस्कान, माथे पर शीतलता, अंतः में शांति-सदभाव और पूर्ण होते रहे, साथ ही हमें भक्ति और प्रसन्नता का दान देना।
हे प्रभु! आंखों में ऐसी प्रेम दृष्टि देना जिससे कि हम द्वेष और घृणा से ऊपर उठकर जी सके। हम कभी भी वैर के बीज को संसार में न फैलाएं, न फैलने दें।
बस केवल शांति की सुखद छाया चारों ओर फैला सकें, ऐसा हमें आशीर्वाद प्रदान करें।
हे नाथ! आपसे हमारी यही विनती है, यही याचना है, जिसे स्वीकार कीजिए प्रभु।
ऊँ शांतिः। ऊँ शांतिः।। ऊँ शांतिः।।।
-आचार्य सुधांशु
Reference
Image
Content from Jivan Sanchetna