नवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है। नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’।
इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
नवरात्रि के दिनों में लोग माँ दुर्गा की पूजा-आराधना करते हैं।
नौ दिनों तक घर और मंदिर में माता को स्थापित कर विधि-विधान से कर्म और मन से शुद्ध होकर पूजा-पाठ और व्रत रखते हैं।
या देवी सर्वभूतेषु मंत्र जाप
इन नौ दिनों में माता के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है ।
दुनिया में शायद हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसमें ईश्वर में मातृभाव को इतना महत्व दिया गया है। नवरात्रि का त्योहार व्रत और साधना के लिए होता है।
माता दुर्गा को समर्पित यह त्योहार संपूर्ण भारत में अत्यधिक उल्लास के साथ मनाया जाता है। दरअसल नवरात्रि का त्योहार उत्सव से ज्यादा व्रत और साधना के लिए होता हैं।
नवरात्रि में माँ दुर्गा को खुश करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना और पाठ किया जाता है इस पाठ में देवी के नौ रूपों के अवतरित होने और उनके द्वारा दुष्टों के संहार का पूरा विवरण है।
कहते है नवरात्रि में माता का पाठ करने से देवी भगवती की खास कृपा होती और हमारी मनोकामना पूर्ण होती हैं।
प्रत्येक माह की प्रतिपदा यानी एकम् से नवमी तक का समय नवरात्रि का होता है। इसमें से चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं।
इसमें दो गुप्त एवं दो उदय नवरात्रि होती हैं। चैत्र और अश्विन मास की नवरात्रि उदय नवरात्रि के नाम से जानी जाती है।
आषाढ़ और माघ की नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के नाम से जानी जाती है। यह दरअसल, बड़ी नवरात्रि को बसंत या चैत्र नवरात्रि और छोटी नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं।
प्रथम संवत् प्रारंभ होते ही बसंत नवरात्रि व दूसरा शरद नवरात्रि, जो कि आपस में 6 माह की दूरी पर है नवरात्रि के आठवें दिन को “अष्टमी” के रूप में और नौवें दिन को “महा नवमी” और चैत्र नवरात्रि पर “राम नवमी” के रूप में मनाया जाता है।
नवरात्रि की प्रतिपदा की शुरुआत जौ बोने उसके बाद इसपर कलश स्थापना के साथ होती है. घट स्थापित करने से पहले साफ मिट्टी में जौ बोये जाने की परंपरा है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जौ को परमपिता ब्रह्मा जी का प्रतीक माना जाता है. इसीलिए सबसे पहले जौ की पूजा होती है और उसे कलश से भी पहले स्थापित किया जाता है.
साल में कुल मिलाकर 4 बार नवरात्रि का पर्व आता है। चैत्र नवरात्रि, शारदीय नवरात्रि और दो गुप्त नवरात्रि चार बार का अर्थ यह कि यह वर्ष के महत्वपूर्ण चार पवित्र माह में आती है।
यह चार माह है:- पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन। व्रत रखने का अधिक महत्व चैत्र और शारदीय नवरात्रि में होता है।
नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है।
इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है।
नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति की पूजा का सबसे शुभ और उचित समय माना जाता है।
यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक कालसे चली आ रही है ।
वह अंतर्निहित ऊर्जा है जो सृजन, संरक्षण और विनाश के कार्य को प्रेरित करती है।”दुर्गा” का अर्थ दुखों को दूर करने वाला है।
लोग उनकी पूजा पूरी श्रद्धा से करते हैं ताकि देवी दुर्गा उनके जीवन से दुखों को दूर कर सकें और उनके जीवन को सुख, आनंद और समृद्धि से भर सकें।
नवरात्रि पर देवी पूजन और नौ दिन के व्रत का बहुत महत्व माना जाता है।
नवरात्रि के नौ पावन दिन स्वयं को शुद्ध, पवित्र, साहसी, मानवीय,आध्यात्मिक और मजबूत बनाने की अवधि होती है।
त्योहार के दौरान देवी से आशीर्वाद के साथ उनके चरित्र के गुणों को अपने व्यव्यक्तित्व में समावेश करना चाहिए।
चैत्र नवरात्रि का महत्व
हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा का जन्म हुआ था और मां दुर्गा के कहने पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था।
इसीलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू वर्ष शुरू होता है।
इसके अलावा कहा जाता है भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि में ही हुआ था।
इसलिए धार्मिक दृष्टि से भी चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है।
शारदीय नवरात्रि का महत्व
हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्र पर्व शुरू होता है जो नवमी तिथि तक चलते हैं। दशमी तिथि को दशहरा मनाया|
सिद्धिऔर साधना की दृष्टि से से शारदीय नवरात्र को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
इस नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति के संचय के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं।
शारदीय नवरात्रि की धूम पूरे देश में देखने को मिलती है और कहा जाता है कि माता की आराधना पूरे 9 दिनों तक कोई व्यक्ति कर ले तो उसे मनचाहा फल मिलता है.
गुप्त नवरात्रि
आषाढ़ और माघ की नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के नाम से जानी जाती है।
यह गुप्त नवरात्रि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और आसपास के इलाकों में खास तौर पर मनाई जाती है।
गुप्त नवरात्रि के दौरान अन्य नवरात्रि की तरह ही पूजन करने का विधान है।
इन दिनों भी 9 दिन के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिपदा से नवमीं तक प्रतिदिन सुबह-शाम मां दुर्गा की आराधना की जाती हैं।
इन नवरात्रि में 10 महाविद्याओं का पूजन होता है।
ये नवरात्रि तंत्र साधना के लिए बहुत अधिक महत्व की मानी गई हैं।
देवी भागवत पुराण के अनुसार जिस तरह वर्ष में 4 बार नवरात्रि आती है और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के 9 रूपों की पूजा होती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है।
गुप्त नवरात्रि विशेष कर तांत्रिक कियाएं, शक्ति साधनाएं, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है।
इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग दुर्लभ शक्तियों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
अष्टमी या नवमी के कन्या-पूजन के साथ नवरात्रि व्रत का उद्यापन करते हैं।
गुप्त नवरात्रि क्या है
गुप्त नवरात्रि किसी खास मनोकामना की पूजा के लिए तंत्र साधना का मार्ग लेने का पर्व है।
किंतु अन्य नवरात्रि की तरह ही इसमें भी व्रत-पूजा, पाठ, उपवास किया जाता है। इस दौरान साधक देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के अनेक उपाय करते हैं।
इसमें दुर्गा सप्तशती पाठ, दुर्गा चालीसा, दुर्गा सहस्त्रनाम का पाठ काफी लाभदायी माना गया है।
यह नवरात्रि धन, संतान सुख के साथ-साथ शत्रु से मुक्ति दिलाने में भी कारगर है।
गुप्त नवरात्रि की देवियां-
मां काली, तारादेवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी माता, छिन्न माता, त्रिपुर भैरवी मां, धुमावती माता, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी इन 10 देवियों का पूजन करते हैं
क्यों मनाई जाती है नवरात्रि ?
शक्ति की उपासना आदिकाल से चली आ रही है। वस्तुत: श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के अंतर्गत देवासुर संग्राम का विवरण दुर्गा की उत्पत्ति के रूप में उल्लेखित है।
समस्त देवताओं की शक्ति का समुच्चय जो आसुरी शक्तियों से देवत्व को बचाने के लिए एकत्रित हुआ था, उसकी आदिकाल से आराधना दुर्गा-उपासना के रूप में चली आ रही है।
असुरों के नाश का पर्व नवरात्रि, नवरात्र मनाने के पीछे बहुत-सी रोचक कथाएं प्रचलित है
शास्त्रों में नवरात्रि का त्योहार मनाए जाने के पीछे दो कारण बताए गए हैं। पहली पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नाम का एक राक्षस था जो ब्रह्मा जी का बड़ा भक्त था।
उसने अपने तप से ब्रह्माजी को प्रसन्न करके एक वरदान प्राप्त कर लिया। वरदान में उसे कोई देव, दानव या पृथ्वी पर रहने वाला कोई मनुष्य मार ना पाए।
वरदान प्राप्त करते ही वह बहुत निर्दयी हो गया और तीनो लोकों में आतंक मचाने लगा। उसके आतंक से परेशान होकर देवी-देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ मिलकर माँ शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया।
माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को अच्छाई पर बुराई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
एक दूसरी कथा के अनुसार, भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले और रावण के संग युद्ध में जीत के लिए शक्ति की देवी माँ भगवती की आराधना की थी।
रामेश्वरम में उन्होंने नौ दिनों तक माता की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने श्रीराम को लंका में विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
दसवें दिन भगवान राम ने लकां नरेश रावण को युद्ध में हराकर उसका वध कर लंका पर विजय प्राप्त की।
इसीलिए शारदीय नवरात्रों में नौ दिनों तक दुर्गा मां की पूजा के बाद दशमी तिथि पर दशहरे का पर्व मनाया जाता है.
नवरात्रि में पूजे जाने वाले माता के नौ स्वरूप
नवरात्रि में माँ दुर्गा को खुश करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना और पाठ किया जाता है
नवरात्र के इन पावन दिनों में हर दिन मां के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है, जो अपने भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती है।
नवरात्रि का हर दिन देवी के विशिष्ठ रूप को समर्पित होता है और हर देवी स्वरुप की कृपा से अलग-अलग तरह के मनोरथ पूर्ण होते हैं।
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ पार्वती माता शैलपुत्री का ही रूप हैं और हिमालय राज की पुत्री हैं। माता नंदी की सवारी करती हैं।
इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल है।
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना पूजा का भी विधान है।ऐसा माना जाता है कि इन नौ दिनों तक मां दुर्गा धरती पर रहती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती है।
नवरात्रि का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है।
माता ब्रह्मचारिणी माँ दुर्गा का दूसरा रूप हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब माता पार्वती अविवाहित थीं तब उनको ब्रह्मचारिणी के रूप में जाना जाता था।
यदि माँ के इस रूप का वर्णन करें तो वे श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके एक हाथ में कमण्डल और दूसरे हाथ में जपमाला है।
देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। जो भक्त माता के इस रूप की आराधना करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघण्टा की पूजा की जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह के दौरान उनका यह नाम पड़ा था।
शिव के माथे पर आधा चंद्रमा इस बात का साक्षी है।
नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्माडा की आराधना होती है।
शास्त्रों में माँ के रूप का वर्णन करते हुए यह बताया गया है कि माता कुष्माण्डा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं।
पृथ्वी पर होने वाली हरियाली माँ के इसी रूप के कारण हैं।
नवरात्र के पाँचवें दिन माँ स्कंदमाता की पूजा का होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है।
स्कंद की माता होने के कारण माँ का यह नाम पड़ा है। उनकी चार भुजाएँ हैं। माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती है।
माँ कात्यायिनी दुर्गा जी का उग्र रूप है और नवरात्रि के छठे दिन माँ के इस रूप को पूजा जाता है।
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा आराधना की जाती है |
वह शेर पर सवार होती हैं और उनकी चार भुजाएं हैं, ऐसा कहा जाता है कि जब मां पार्वती ने शुंभ निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध किया था तब उनका रंग काला हो गया था जब से उन्हें कालरात्रि के नाम से जाना जाता है
नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी की आराधना होती है। माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है।
नवरात्रि के आखिरी दिन माँ सिद्धिदात्री की आराधना होती है।
ऐसा कहा जाता है कि जो कोई माँ के इस रूप की आराधना सच्चे मन से करता है उसे हर प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है।
माँ सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएँ हैं।
नवरात्रि कलर्स
जिस प्रकार हिंदू धर्म में नवरात्रि का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है।
उसी प्रकार नवरात्रों में रंगों का विशेष महत्व है नवरात्रों में माता के भक्त पूरे नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना करके उन्हे प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।
मां को प्रसन्न करने के लिए 9 दिन तक अलग-अलग रंगों की पोशाक पहनकर नवरात्रि मनाई जाती हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन नौ दिनों में माता दुर्गा के नौ रंग निर्धारित होते हैं।
माता के भक्त नवरात्रि के नौ दिनों को बेहद शुभ मानते हैं। इन नौ दिनों में अलग-अलग रंग के कपड़े पहनकर माता की भक्ति करने का अलग-अलग महत्व बताया जाता है।
आइए जानते हैं किस दिन किस रंग के कपड़े पहनकर मां की उपासना करने से मां अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करती हैं।
मां शैलपुत्री-
पहला दिन माता शैलपुत्री का माना जाता है। इस दिन लाल रंग का कपड़ा पहनना शुभ माना जाता है। लाल रंग में प्रेम का रंग माना जाता है।
यह रंग साहस, शक्ति और कर्म का प्रतीक है। इस दिन लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए
मां ब्रह्माचारिणी –
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी की पूजा की जाती है। इस दिन हरे रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
जो कि जीवन की हरी-भरी खुशियों का प्रतीक है
मां चंद्रघंटा-
नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।
इस दिन पीले रंग का कपड़ा पहना जाता है।
पीले रंग से लोगों को ऊर्जा मिलती है। वहीं पीले, रंग में अलग तरह की चमक होती है।
मां कुष्मांडा-
नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्मांडा देवी की पूजा की जाती है।
इस दिन ऑरेंज कलर के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।
स्कंद माता-
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है।
इस दिन ग्रे रंग का कपड़ा पहना जाता है। इस कलर का कपड़ा पहनने से आप खुद को एनर्जी से भरा महसूस करते हो।
मां कात्यनीदेवी –
नवरात्र के छठे दिन मां कात्यनीदेवी की पूजा की जाती है।
इस दिन नारंगी रंग का कपड़ा पहनना चाहिए।
इस रंग का कपड़ा पहनने से वातावरण में नकारात्मकता समाप्त हो जाती है और आप खुद को फ्री फील महसूस करते हो।
मां कालरात्रि-
नवरात्र के 7वें दिन कालरात्रि की पूजा होती है। इस दिन कहा जाता है कि नीला रंग पहनना शुभ होता है।
महागौरी –
नवरात्र के 8वें दिन महागौरी की पूजा होती है।
इस दिन गुलाबी रंग पहनना शुभ होता है।
इस दिन आप गुलाबी रंग के कपड़े पहन कर ही पूजा करें। गुलाबी रंग से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
मां सिद्धीदात्री-
नवरात्र के 9वें दिन मां सिद्दात्री की पूजा की जाती है।
इस दिन बैंगनी या पर्पल कलर के कपड़े पहनना बेहद शुभ होता है।
इस रंग के कपड़े पहनकर ही मां की पूजा करें और कन्याओं को प्रसाद खिलाएं।
नवरात्रि के दौरान उपवास का महत्व
जो लोग लगातार 9 दिनों तक उपवास करते हैं, वे अन्य लोगों की तुलना में शांति और सकारात्मकता का अनुभव करते हैं।
क्योंकि जब हम रोजमर्रा की जिंदगी के साथ इस ओर बढ़ते हैं, तो हम पहले की तुलना में कुछ अलग और खास अनुभव करते हैं।
शास्त्रों में वर्णित है कि उपवास हमारे शारीरिक संतुलन को बनाए रखता है।
व्रत रखने से हम न केवल कई बीमारियों से बचते हैं बल्कि देवी की कृपा भी हम पर बनी रहती है।
यदि हम स्वयं के प्रति सच्चे रहकर इस व्रत को रखते हैं, तो उसका फल भी हमें मिलता है।
ध्यान रखें कि चाहे कुछ भी हो जाए, हमें अपने व्रत के संकल्प से कभी भी विचलित नहीं होना है
नवरात्रि रखने के नियम
ब्रह्मचर्य का पालन-
नवरात्रि के व्रत का पहला नियम यह है कि इस व्रत रखने वाले महिला और पुरुष दोनो ब्रह्मचर्य का पालन करें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां की पूजा अर्चना साफ मन से करने से ही माता रानी प्रसन्न होती है।
नवरात्रि के व्रत में घर में कलश स्थापना करने के बाद घर को भूलकर भी खाली ना छोड़े।
ध्यान रखें घर में कलश स्थापना के बाद कोई न कोई व्यक्ति घर में जरूर रहें।
शांति और सद्भाव बनाए रखें-
नवरात्रि के दिनों में मां का ध्यान करते समय अपने मन को शांत रखने से ही घर में शांति और सद्भाव आने के साथ माता लक्ष्मी अपने भक्त पर प्रसन्न होती हैं।
ऐसा माना जाता है कि जिन घरों में अक्सर कलह रहती है उन घरों में कभी भी बरकत नहीं होती है, क्योंकि मां लक्ष्मी ऐसे घर में वास नहीं करती हैं।
सात्विक आहार-नवरात्रि के दौरान व्यक्ति को प्याज,लहसुन और मांस- मदिरा का सेवन करने से बचना चाहिए। नवरात्रि के नौ दिनों तक पूर्ण सात्विक आहार का सेवन ही करना चाहिए।
अनादर ना करें-
वैसे तो व्यक्ति को कभी भी किसी का अनादर नहीं करना चाहिए। लेकिन नवरात्रि के दौरान इस बात का खास ध्यान रखें कि यदि घर में कोई अतिथि या भिखारी आए तो उसका आदर सत्कार करें। घर आए हुए व्यक्ति को भोजन, पानी ग्रहण करने को दें। मान्यता है कि मां इन दिनों में किसी भी रूप में आपके घर में प्रवेश कर सकती हैं। इसलिए कभी किसी का अनादर ना करें।
साफ सफाई पर ध्यान रखे-
नवरात्रि के दौरान घर में साफ सफाई का खास ध्यान रखें। इन दिनों कालें रंग के कपड़े और चमड़े से बनी वस्तुओं का इस्तेमाल करने से बचें। ध्यान रखें इन दिनों बाल, दाढ़ी और नाखून भी काटने से परहेज करना चाहिए।
समय बर्बाद ना करें-
नवरात्रि के दिनों में प्रातः उठकर सबसे पहले स्नान करके मां का ध्यान करना चाहिए। इन दिनों किए गए दुर्गा सप्तशती के पाठ का विशेष फल मिलता हैं। कहा जाता है कि नवरात्रि के दौरान दिन के समय सोना भी नहीं चाहिए।